श्री कृष्ण की लीलाओ में गौ माता को प्रधान स्थान रहा है । भगवान् विष्णु जैसे महान् गौ भक्त है उसी प्रकार श्री शंकर भी महान गौ भक्त है । पुराणों में उपलब्ध भगवान् शिव की गौ भक्ति दर्शाने वाले कुछ प्रसंग यहाँ दिए जा रहे है । एक बार भगवान् शिव अत्यंत मनोहारी स्वरुप धारण करके भ्रमण कर रहे थे।यद्यपि दिगंबर वेश है ,शरीर पर भस्म रमाये है सुंदर जटाएं है परंतु ऐसा सुंदर भगवान् का रूप करोडो कामदेवों को लज्जित कर रहा है। ऋषि यज्ञ कर रहे थे और शंकर जी वहा से अपनी मस्ती में रामनाम अमृत का पान करते करते जा रहे थे। भगवान् शिव के अद्भुत रूप पर मोहित होकर ऋषि पत्नियां उनके पीछे पीछे चली गयी। ऋषियो को समझ नहीं आया की यह हमारे धर्म का लोप करने वाला अवधूत कौन है जिसके पीछे हमारी पत्नियां चली गयी। पत्नियो नहीं रहेंगी तो हमारे यज्ञ कैसे पूर्ण होंगे? ऋषियो ने ध्यान लगाया तो पता लगा यह तो साक्षात् भगवान् शिव है। ऋषियो को क्रोध आ गया, ऋषियो ने श्राप दे दिया और श्राप से भगवान् शिव के शरीर में दाह(जलन) उत्पन्न हो गया। शंकर जी वहां से अंतर्धान हो गए। हिमालय की बर्फ में चले गए, क्षीरसागर में गए, चन्द्रमा ...
एक बार महर्षि ऋचीक से उनकी पत्नी और सास दोनो ने ही पुत्र प्राप्ति के लिये प्रार्थना की। महर्षि ऋचीक ने उनकी प्रार्थना स्वीकार करके दोनो के लिये अलग अलग मंत्रो से चरु पकाया और स्नान करनेके लिये चले गये ।सत्यवती की मां ने यह समझकर कि ऋषिने अपनी पत्नी के लिये श्रेष्ठ चरु पकाया होगा अतः उसने बेटी से वह चरु मांग लिया । इसपर सत्यवती ने अपना चरु माँ को दे दिया और माँ का चरु वह स्वयं खा गयी । जब ऋचीक मुनिको इस बातका पता चला, तब उन्होंने अपनी पत्नी सत्यवती-से कहा कि तुमने बडा अनर्थ कर डाला। अब तुम्हारा पुत्र तो लोगो को दण्ड देनेवाला घोर प्रकृतिका होगा और तुम्हारा भाई होगा एक श्रेष्ठ ब्रह्मवेत्ता । (सत्यवती-ने ऋचीक मुनि को प्रसन्न किया और प्रार्थना की कि स्वामी ! ऐसा नहीं होना चाहिये । तब उन्होंने कहा – अच्छी बात है । पुत्रके बदले तुम्हारा पौत्र वैसा घोर प्रकृतिका होगा । समयपर सत्यवतीके गर्भसै जमदग्निका जन्म हुआ ।(परंतु जमदग्नि की जगह उनके पुत्र परशुराम घोर प्रकृति के हुए) के सत्यवती समस्त लोकों को पवित्र करनेवाली परम पुण्यमयी कौशिकी नदी बन गयी । महाभारत्तमें कहा गया है कि ...