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आनन्दधाम, अनाथ एवं अतिथि गौशाला


गोवर्धन परिक्रमा मार्ग, राधाकुंड, मथुरा उत्तर प्रदेश-281504
संपर्क : 08650320453, 0565-2812169
ई-मेल : ananddhamgaushalamathura@gmail.com

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महर्षि च्यवन की अद्भुत गौ भक्ति और गौ माता का श्रेष्ठत्व ।

श्री च्यवन ऋषि महर्षि भृगु एवं देवी पुलोमा के पुत्र थे । उन्होंने अपने जीवन का बहुत बडा भाग नैष्ठिक ब्रह्मचर्य के साथ उग्र तपमें बिताया था । परम पावनी वितस्ता नदी के सुरम्य तटपर आहार विहार छोड़कर एक आसन से बैठकर उन्होंने बहुत बर्षोंतक कठिन तपस्या की थी । उनके शरीरपर वामी जम गयी और उसके ऊपर घास उग गयी थी । बहुत समय व्यतीत होने के कारण वह मिट्टीके टीले के समान प्रतीत होने लगा । दैववश उनकी चमकती हुई आंखो के आगे चीटेयों ने छेद का दिया था ।  एक बार परम धर्मात्मा राजा शर्याति अपनी रानियों तथा अपनी सुकन्या को अपने साथ लेकर सेना के साथ उसी जनमें विहार करने लगे । सुकन्या अपनी सखियों के साथ इधर उधर घूमती हुई उसी वामी के संनिकट जा पहुंची । वह बड़े कुतूहल के साथ उसे देखने लगी । देखते देखते उसकी दृष्टि महर्षि च्यवन की आंखोपर जा पडी जो कि चीटियो के बनाये छिद्रो से चमक रही थीं । सुकन्या ने परीक्षा के लियएक कांटे से उन नेत्रोंमे छेद कर दिया । छेद करते ही वहां से रक्त की धारा बह निकली । सब भयभीत होकर यह से चल दिए। इस महान् अपराध के कारण शर्यातिके सैन्य बल तथा अन्य सभी का मल मूत्रावरोध, मल मू...

सुंदर कथा ३३(श्री भक्तमाल – गौ भक्त राजर्षि दिलीप)

​शास्त्रो में राजा को भगवान् की विभूति माना गया है। साधारण व्यक्ति से श्रेष्ट राजा को माना जाता है, राजाओ में भी श्रेष्ट सप्तद्वीपवती पृथ्वी के चक्रवर्ती सम्राट को और अधिक श्रेष्ट माना गया है। ऐसे ही पृथ्वी के एकछत्र सम्राट सूर्यवंशी राजर्षि दिलीप एक महान गौ भक्त हुऐ।   महाराज दिलीप और देवराज इन्द्र में मित्रता थी । देवराज के बुलाने पर दिलीप एक बार स्वर्ग गये । देव असुर संग्राम में देवराज ने महाराज दिलीप से सहायता मांगी। राजा दिलीप ने सहायता करने के लिए हाँ कर दी और देव असुर युद्ध हुआ । युद्ध समाप्त होने पर स्वर्ग से लौटते समय मार्ग में कामधेनु मिली; किंतु दिलीप ने पृथ्वीपर आने की आतुरता के कारण उसे देखा नहीं । कामधेनु को उन्होंने प्रणाम नहीं किया , न ही प्रदक्षिणा की।  इस अपमान से रुष्ट होकर कामधेनु ने शाप दिया- मेरी संतान (नंदिनी गाय) यदि कृपा न करे तो यह पुत्रहीन ही रहेगा ।  महाराज दिलीप को शाप का कुछ पता नहीं था । किंतु उनके कोई पुत्र न होने से वे स्वयं, महारानी तथा प्रजा के लोग भी चिन्तित एवं दुखी रहते थे । पुत्र प्राप्ति की इच्छा से महारा...

भगवान् श्री शंकर की अद्भुत गौ भक्ति ।

श्री कृष्ण की लीलाओ में गौ माता को प्रधान स्थान रहा है । भगवान् विष्णु जैसे महान् गौ भक्त है उसी प्रकार श्री शंकर भी महान गौ भक्त है । पुराणों में उपलब्ध भगवान् शिव की गौ भक्ति दर्शाने वाले कुछ प्रसंग यहाँ दिए जा रहे है । एक बार भगवान् शिव अत्यंत मनोहारी स्वरुप धारण करके भ्रमण कर रहे थे।यद्यपि दिगंबर वेश है ,शरीर पर भस्म रमाये है सुंदर जटाएं है परंतु ऐसा सुंदर भगवान् का रूप करोडो कामदेवों को लज्जित कर रहा है। ऋषि यज्ञ कर रहे थे और शंकर जी वहा से अपनी मस्ती में रामनाम अमृत का पान करते करते जा रहे थे। भगवान् शिव के अद्भुत रूप पर मोहित होकर ऋषि पत्नियां उनके पीछे पीछे चली गयी। ऋषियो को समझ नहीं आया की यह हमारे धर्म का लोप करने वाला अवधूत कौन है जिसके पीछे हमारी पत्नियां चली गयी। पत्नियो नहीं रहेंगी तो हमारे यज्ञ कैसे पूर्ण होंगे? ऋषियो ने ध्यान लगाया तो पता लगा यह तो साक्षात् भगवान् शिव है। ऋषियो को क्रोध आ गया, ऋषियो ने श्राप दे दिया और श्राप से भगवान् शिव के शरीर में दाह(जलन) उत्पन्न हो गया। शंकर जी वहां से अंतर्धान हो गए। हिमालय की बर्फ में चले गए, क्षीरसागर में गए, चन्द्रमा ...